बिहार में टिकट बेचने के कारोबार में जुटे नेता

पटना। द न्यूज़।( विद्रोही)। बिहार विधानसभा चुनाव में समाज सुधार के नाम पर कई पॉलिटिकल व्यापारी सूबे को लूटने आ गए हैं। बिहार की जनता को इन धनपशुओं से सावधान रहने की जरूरत है। ऐसे छुटभैये राजनीतिक दलों का एक ही मकसद होता है पहले पैसा फेंककर अपना और अपने दल की मार्केटिंग करो और फिर टिकट बेचकर करोड़ों कमाओ। ये इन्वेस्टमेंट का नया तरीका है। बिहार गरीब प्रदेश है इसे जितना चूस सको उतना चूसो। बिहार में दो तीन वर्षों के अंदर ऐसे छुटभैये दलों की बाढ़ आ गयी है। यहां किसी दल का नाम जिक्र नहीं होगा लेकिन उनके तरीके से आपको रंगे सियार को पहचानने में कोई दिक्कत नहीं होगी।

 लोकसभा चुनाव 2019 के पहले से ही बिहार में एक पार्टी की धमाकेदार इंट्री होती है। सभी मीडिया हाउस को फूल पेज का विज्ञापन मिलता है। मार्केटिंग के लिए एक करोड़ से अधिक का बजट रखा जाता है। कुछ लोलुप मीडिया इस धनपशु के आगे पीछे करने लगते है। जबर्दस्त मार्केटिंग करने के बाद यह दल विपक्ष के एक बड़ा खंभा को भी पैसे से आकर्षित कर लेता है। गठजोड़ होता है। अपने हिस्से का टिकट लेता है और फिर बेच देता है। एक करोड़ इन्वेस्ट कर 15 करोड़ बना लेता है। बॉलीवुड में रहकर भी कोई इतने कम वर्ष में इतना धन नहीं कमा सकता है। धन के साथ जनता की मुफ्त में जयकार। राष्टीय अध्यक्ष का तमगा। समाज सुधार के नाम पर बिहार को लूटने का कारोबार चल पड़ता है। जनाधार कुछ नहीं है और पैसे फेंककर हवा बनाया जा रहा है। पैसे की लेनदेन मन मुताबिक नहीं तो फिर दोस्ती भी नहीं।

बिहार में इनदिनों छोटे राजनीतिक दलों की बाढ़ आई है। आंध्र प्रदेश, मुम्बई, दिल्ली समेत कई राज्यों के इन्वेस्टर आ गए हैं। सभी ने एक स्थानीय नेता की खोज कर नया ग्रुप बना लिया है। अपनी खेती तो होगी ही कुछ टिकट का भाव मिल गया तो आजीवन खेती चलती रहेगी। राजनीति एक कारोबार बनता जा रहा है। एक बार जीत गए तो भारी भरकम मासिक वेतन के साथ में आजीवन पेंशन का इंतजाम हो जाता है । जबकि बेरोजगार सड़क पर भटक रहे हैं। ये छुटभैये दल राष्टीय दाल को भी प्रलोभन देते हैं। बड़े दलों की पूंछ पकड़कर वैतरणी पार करने की लगातार कोशिश करते हैं। अपना पाप धुलने के लिए करोरों का दाँव खेलते हैं। बिहार में एक छुटभैया दल यह खेल शुरू कर दिया है।