बिहार चुनाव: इस बार जात नहीं,जमात और समाज की सोच पर

पटना। द न्यूज। बिहार अब एक नए सामाजिक और राजनीतिक मोड़ पर खड़ा है।
हाल ही में महागठबंधन सरकार के दौरान कराई गई जातिगत जनगणना के आंकड़े सामने आए हैं, जिसने कई बहसों को जन्म दिया है। लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव में यहां की जनता इस बार जात नहीं, जमात और समाज की बेहतरी पर वोट देने का मन बना रही है।


ब्राह्मण और सवर्ण वर्ग की स्थिति।ब्राह्मण समुदाय – 47.81 लाख (3.65%)
लेकिन भट्ट, गोस्वामी और गिरी ब्राह्मण को अलग-अलग गिने जाने से लगभग 5 लाख की अतिरिक्त आबादी जुड़ती है।
वास्तविक संख्या 53 लाख (करीब 4%) तक पहुँचती है। भूमिहार समुदाय – 37.50 लाख (2.86%)
इस तरह ब्राह्मण और भूमिहार मिलकर कुल करीब 90 लाख (लगभग 7%) होते हैं। राजपूत – 45.10 लाख (3.45%)। कायस्थ – 7.85 लाख (0.60%)
(रस्तोगी उपजाति अलग से दर्ज – लगभग 9 हज़ार)।कुल मिलाकर सवर्ण वर्ग की आबादी लगभग 1.43 करोड़ है, यानी बिहार की कुल जनसंख्या का लगभग 11-12 %।


यादव समाज – एकीकृत या विभाजित?। जहां ब्राह्मणों की कुछ उपजातियाँ अलग-अलग गिनी गईं, वहीं यादव समुदाय की सभी उपजातियाँ एक साथ जोड़ी गईं —
ग्वाला, अहीर, घासी, मेहर, सादगोपी, लक्ष्मी-नारायण गोला सभी को एक ही श्रेणी में शामिल किया गया। कुल यादव आबादी: 1.86 करोड़ (14 फीसदी)
इससे यादव समुदाय बिहार का सबसे बड़ा सामाजिक समूह बन गया है।राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह एकीकृत गणना बनाम विभाजित वर्गीकरण कई सवाल खड़े करती है — क्या यह आंकड़ा संग्रह की त्रुटि है या राजनीतिक रणनीति? यह एक बहस का विषय है


ईबीसी – बिहार की सबसे बड़ी ताकत

अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) की आबादी बिहार में लगभग 36% है — यानी राज्य का सबसे बड़ा सामाजिक वर्ग।
हर राजनीतिक दल इस वर्ग को अपने साथ जोड़ने के लिए योजनाओं, प्रतिनिधित्व और सामाजिक सम्मान के वादे कर रहा है।
यही वर्ग आज बिहार की राजनीतिक धुरी बन चुका है।


नई सोच: जाति से ऊपर, समाज की ओर। यह है नया बिहार।