पटना। द न्यूज। विद्रोही|
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण की 121 सीटों पर मतदान संपन्न हो चुका है। अब सभी राजनीतिक दल अपने-अपने नफा-नुकसान के विश्लेषण में जुट गए हैं। ठंड के मौसम में इस बार सियासी पारा तेजी से गर्म हो गया है। देश भर के चुनाव विश्लेषक भी इस बार उलझन में हैं — आखिर बिहार की सत्ता किसके हाथ जाएगी?चुनाव विश्लेषकों के मुताबिक इस चरण के नतीजों से कोई भी प्रमुख दल स्पष्ट बहुमत की स्थिति में नहीं दिख रहा। जनता के रुझान ने सभी समीकरणों को उलझा दिया है।

बड़े नेताओं की फौज मैदान में, लेकिन तीसरे मोर्चे का उभारइस चुनावी संग्राम में एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा जैसे दिग्गज नेताओं की टीम एनडीए का चेहरा बनी हुई है।
दूसरी ओर राहुल गांधी, लालू प्रसाद यादव, अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव की जोड़ी महागठबंधन के साथ सियासी रण में डटी है।लेकिन इन दो बड़े गठबंधनों के बीच एक नया नाम उभरा है — जनसुराज।
इस मंच के सूत्रधार प्रशांत किशोर (पीके) ने अकेले अपने दम पर इस चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। उनके साथ पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष उदय सिंह मजबूती से खड़े हैं।
जनता ने स्वीकारा नया विकल्प।जनसुराज की पैठ अब ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरी मतदाताओं तक दिखने लगी है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि पीके ने अपने जनसंवाद, पदयात्रा और साफ-सुथरी राजनीति के संदेश के जरिए बिहार की जनता को नया विकल्प दिया है।
पहले चरण के मतदान ने इस बात के संकेत दे दिए हैं कि जनता ने प्रशांत किशोर की बात सुनी भी है और उसे गंभीरता से लिया भी है।
अभी तस्वीर धुंधली, लेकिन मुकाबला कड़ा
पहले चरण के बाद यह तो साफ है कि किसी भी दल के लिए राह आसान नहीं।
एनडीए और महागठबंधन दोनों को जनसुराज के उभार ने चुनौती दी है।
अब निगाहें दूसरे चरण के मतदान पर टिक गई हैं, जहाँ यह तय होगा कि बिहार की सत्ता की चाबी किसके हाथ जाएगी।