रुमकी झुमकी बेटी व पढ़ल पण्डित दामाद, छठ व्रतियों की ख्वाहिश।भगवान भास्कर सुप्रीम देवता!

पुत्र नहीं, बेटी पहली ख्वाहिश है छठ व्रतियों की
रुमकी-झुमकी बेटी मांगीला, पढ़ल पंडितवा दामाद

पटना( द न्यूज़/ विद्रोही)। रुमकी-झुमकी बेटी मांगीला, पढ़ल पंडितवा दामाद। छठ पर्व का यह लोकगीत आदर्श समाज को प्रतिष्ठित करता है। कुल को चलाने के लिए बेटे की चाहत रखने वाले लोगों की आंखें भी खोलता है।
प्राचीन काल से आम लोगों में यह धारणा बन बैठी है कि आस्था का यह छठ पर्व पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है पर ‘‘रुमकी-झुमकी’ गीत यह अधिष्ठापित करता है कि कुल में महिलाओं की पहली इच्छा बेटी प्राप्ति की ही है उसके बाद महिलाओं को ‘‘पढ़ल पंडितवा’ जैसा बेटा चाहिए।

छठ व्रत में सूर्य आराध्य देव तो हैं ही पर यह ‘‘छठी मईया’ का भी पर्व है। ऋग्वेद में देवता के नाम पर सबसे अधिक पूज्य ‘‘सावित्री’ है। सूर्योदय के पहले की स्थिति सावित्री की है और सूर्योदय के बाद से लेकर सूर्यास्त के पहले सूर्य देव की स्थिति है। तार्किक दृष्टि से देखा जाए तो छठ पर्व में ‘‘सावित्री’ और ‘‘सूर्य ’ दोनों आराध्य देवता हैं। सुबह का अघ्र्य और सांझ का अघ्र्य क्या है। दोनों दिनों ऊर्जा के स्त्रोत की पूजा होती है। इसलिए छठ पर्व के गीत में महिलाओं को पुत्री व पुत्र दोनों की कामना दिखती है। महिलाओं को राम जैसा बेटा चाहिए तो उन्हें सीता जैसी बेटी भी चाहिए। इस तरह छठ व्रत से केवल बेटा प्राप्त करने जैसी धारणा पूरी तरह ध्वस्त होती है। भारतीय इष्ट समाज को बेटा और बेटी दोनों चाहिए। ‘‘ हे गंगा मइया! मांगी ल हम वरदान। जनकपुर नइहर तु दीह ससुर अवधपुर समान। राम जइसन बेटा तु दीह बेटी सीता समान’। छठ पर्व एक प्रकृति पूजा है। सृष्टि संतुलन की पूजा है। आधुनिक युग में छठ पर्व की वैज्ञानिक प्रासंगिकता है। फिलहाल पूरे देश में बेटी बचाओ आंदोलन चल रहा है, जबकि 1500 वर्ष पहले ऋग्वेद काल में ही बेटी की महता को दर्शा दिया गया था। ऋग्वेद के सूक्तों के रचयिता यदि वशिष्ठ, भारद्वाज व याज्ञवलक्य ऋषि हैं तो इसके सूक्तों के रचयिता घोषा, अपाला व लोपमुद्रा जैसी विदूषी महिलाएं भी हैं। ऋग्वेद के कुल 1028 सूक्तों में 170 सूक्त सावित्री को समर्पित हैं। उस समय सावित्री ही अधिष्ठात्री देवी हैं। 1500 पूर्व से लेकर आज तक घर-घर में जाप के गायत्री मंत्र का उद्गम भी ऋग्वेद ही हैं। ऋग्वेद के सातवें मंडल में गायत्री मंत्र का जिक्र है, जिसे सावित्री मंत्र भी कहा जाता है। यह गायत्री मंत्र सविता/सावित्री को समर्पित है, ओइम भूभरुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात। गायत्री मंत्र सवित्री को ही समर्पित है।

भारतीय संस्कृति में प्रकृति कोई बाहरी सत्ता नहीं है, बल्कि मनुष्य की आशा व आकांक्षा के साथ ताल मिलाकर चलने वाली अविच्छेद संगिनी है। लिहाजा छठ पर्व भी प्रकृति पूजा है। समाज में सामंजस्य बनाने के लिए प्रकृति की सत्ता को अलग नहीं किया जा सकता है। सृष्टि चलती रहे व यहां संतुलन बना रहे इसलिए बेटी व बेटा दोनों की कामना होती है। छठ पर्व कर जो यह सोचते हैं कि इससे पुत्र की प्राप्ति होगी यह उनकी गलत सोच है। छठ व्रत के उद्गम के पीछे भी यही सोच है। राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी की कथा में संतानोत्पति का जिक्र है। जब रानी मालिनी के गर्भ से मृत संतान की उत्पत्ति हुई तो राजा प्रियव्रत शोकाकुल होकर आत्महत्या के लिए आगे बढ़े। उसी समय षष्ठी देवी सामने प्रकट हुई और उसने कहा कि जो सच्चे मन से उनकी पूजा करेगा तो संतान का अवश्य जन्म होगा। देवी ने अपना नाम षष्ठी बताया। बाद में उनकी पूजा अर्चना के बाद मालिनी को संतान हुई।ग्रंथों में महाभारतकालीन दानवीर कर्ण द्वारा छठ व्रत करने का उल्लेख है। किंवदंती के अनुसार उन्होंने सबसे पहले सूयरेपासना कर छठ व्रत की शुरुआत की। द्रौपदी द्वारा भी छठ व्रत करने का जिक्र है। पांडवों के खोए साम्राज्य प्राप्त करने के लिए द्रौपदी ने छठ व्रत किया था। 14 वर्ष वनवास पूरे कर अयोध्या लौटने के बाद सीता द्वारा छठ व्रत करने का उल्लेख है।

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