पटना ( द न्यूज़)। विद्रोही।अतीत का पाप अच्छे सत्कर्मो से छिप जाता है। यदि सत्कर्म प्रबल हो जाएगा तो पाप की नही, केवल सत्कर्म की ही चर्चा होती है। भारतीय इतिहास व संस्कृति में रत्नाकर और अंगुलिमाल डाकू की कहानी इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। जब रत्नाकर डाकू को ज्ञान आया तो वह वाल्मीकि बन गए और रामायण की रचना कर दी और अंगुलिमाल डाकू को ज्ञान आया तो वह हिंसा छोड़ अहिंसा के मार्ग पर चलकर अहिंसका कहलाया।सभी लोग जानते हैं अंगुलिमाल एक डाकू था। लोगों की उंगलियां काटकर गले में माला बनाकर पहनता था ताकि उसका दहशत फैले। लोग डरे। डर से अपनी संपत्ति जायदाद उसे दे दे।
यह कहानी आधुनिक बिहार की है। एक एक्सट्रीम कहानी है। अव्वल दर्जे के दुर्दांत डाकू की कहानी है। जो भगवान बुद्ध की सानिध्य में आने के बाद सत्कर्म करता है और भारत की जनता के माफ कर देती है। वह डाकू मगध का था। सोनपुर के आस पास की कहानी है जहां अंगुलिमाल डाकू का आतंक फैला था। भगवान बुद्ध के समय की कहानी है। 600 ईस्वी पूर्व की कहानी है। यानी आज से करीब 2500 साल पहले की कहानी है। उस कहानी ने बहुतों को सभ्य कर दिया और उनका नाम इतिहास में दर्ज हो गया। अंगुलिमाल डाकू के आतंक के बारे में जब सोनपुरवासियों ने बुद्ध को बताया तो वे घने जंगलों में निकल पड़े जहां अंगुलिमाल रहता था। जंगल मे बुध को देखते ही डाकू गरज पड़ा। तुम्हें डर नहीं लगता। एक क्षण में गला उतार दूंगा। सबसे शक्तिशाली हूं। बुद्ध बोले तुम केवल संहार कर सकते हो। किसी की जिंदगी ले सकते हो। क्या जिंदगी देने की ताकत है तुममें। जिन लोगों की अंगुलियां काटे हो उसे अब जोड़कर दिखाओ। तुम शक्तिशाली नहीं हो। तुम डरपोक हो। जंगल मे छिपकर रहते हो। हथियार के साथ चलते हो। बुद्ध भगवान की बातें सुनकर अंगुलिमाल की आंखे खुल गयी। उसने सत्कर्म अपना लिया। सारे पाप छोड़ दिया। अपने सत्कर्मों से वह अहिंसका कहलाया। यह कहानी बहुत कुछ सीख देती है। आज मरने के बाद भी किसी को याद कर रहा है तो उसका सत्कर्म है। सत्संगति, अच्छे कर्म व नया व्यक्तित्व के बल पर उसके बुरे काम छिप गए हैं। यदि कोई ऐसे लोगों को याद कर रहा है तो वह भारतीय संस्कृति व परंपरा का निर्वहन कर रहा है। छिछले लोग विवाद गढ़ते हैं। सीखिये अंगुलिमाल डाकू से। उसी तरह रत्नाकर डाकू से नारद मुनि का संवाद इतिहास के पन्नों में है। नारद ने जब डाकू रत्नाकर से पूछा तुम यह अपराध किस लिए करते हो तो उसने बताया माता पिता के भरण पोषण के लिए। जब नारद ने पूछा कि क्या तुम्हारे इस पाप में तुम्हारे माता पिता भागी हैं। रत्नाकर घर गया और नारद के सावल माता पिता से पूछे। इसपर रत्नाकर के माता पिता ने पाप का भागी बनने से इनकार कर दिया। तब रत्नाकर की आंख खुली और वह रत्नाकर से वाल्मीकि बना।