पटना। द न्यूज़।( विद्रोही की कलम से)। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार 15 वर्षों से मुख्यमंत्री की ताज पहन रहे हैं।इसकी कुछ खास वजह है। उन्होंने इस मिथक को भी तोड़ा है कि जिस जाति की जनसंख्या अधिक होगी उसके मुख्यमंत्री बनने की ही संभावना अधिक होगी। प्रदेश में महज 4 फीसदी जनसंख्या कुर्मी की है पर अपनी मारक रणनीति से नीतीश कुमार 15 फीसदी जनसंख्या वाले पर भी भारी पड़ते हैं। इसलिये बिहार के धरोहर चाणक्य ने कहा है जिसके पास बुद्धि है उसी के पास बल भी है, बुद्धि यस्य बलं तस्य। नीतीश ने चाणक्य के रास्ते पर चलते हुए बड़ी बड़ी हस्तियों को साधा है। भाजपा के दिग्गज भले ही अन्य राज्यों में अपनी पैठ जमा लिए हो पर बिहार में भाजपा नीतीश की शरण में ही है। भाजपा के सारे गणित बिहार में नीतीश के आगे फेल हो जाते हैं। वास्तविकता है कि भाजपा बिहार में यहअकेले चलने की ताकत नहीं है। अब चलते हैं उन तरीकों पर जिसके बल पर नीतीश राज कर रहे हैं। पहला है, राजनीतिक समीकरण। हमेशा नीतीश मजबूत राजनीतिक समीकरण वाले दलों को साथ लेकर चलते हैं। उनमें यह खासियत है कि बड़े दलों/ वोट बैंक वाले उनके चुम्बकीय आकर्षण में आ जाते हैं। फिलहाल भाजपा, लोजपा उनके साथ है। यानी कि बैकवर्ड, दलित व सवर्णों का मजबूत साथ है। दूसरी बात है कि अल्पसंख्यक उन्हीं के साथ रहते हैं जिनके पास सत्ता होती है। इसलिए भाजपा के रहते हुए भी लगभग 50 फीसदी अल्पसंख्यक नीतीश की अगुवाई में एनडीए के साथ चले आते हैं। इसलिए राजनीतिक समीकरण नीतीश को गद्दी दिलाने में अहम भूमिका निभाते हैं।
ज्ञात हो भाजपा से अनबन होने पर नीतीश ने अपने मंत्रिमंडल से सभी भाजपा मंत्रियों को धकिया दिया था। वर्ष 2015 का विधानसभा चुनाव नीतीश ने राजद से हांथ मिलाकर लड़ा और भाजपा को पराजित किया। और जब राजद स्मार्ट बनने लगा तो उसे कान खींचकर सत्ता से बाहर कर दिया। 14 फीसदी का दावा करने वाले एक मिनट में सत्ता से बेदखल कर दिए गए। राजनीति से इतर कुछ क्षेत्रों में विकास भी विपक्ष पर खासा भारी पड़ता है। जैसे सड़क, बिजली के क्षेत्र में विकास लालू- राबड़ी शासन को मुंह चिढ़ाते हैं। नीतीश की चुनाव जीतने की एक और अहम रणनीति है ब्यूरोक्रेसी। चुनाव आते ही नीतीश सरकार सभी जिलों में अपनेपसन्द के आईएएस, आईपीएस व अन्य प्रभावशाली अधिकारियों को तैनात कर देती है। इसका खासा फायदा नीतीश को मिलता है। चुनाव के पहले अधिकारियों की तैनाती शुरू हो गयी है। कल ही कई एसडीओ का तबादला किया गया है। इसके पहले एसपी, डीएम का तबादला हो चुका है। ये सभी कहीं न कहीं सत्ताधारी दल को मदद पहुंचाते हैं। नीतीश हमेशा विरोधियों व अपने घटक दल से सतर्क रहते हैं। हाल ही में लोजपा नेता चिराग पासवान ने नीतीश की अपरोक्ष रूप से आलोचना शुरू की। नीतीश ने इसके बाद जीतन राम मांझी से नजदीकियां बढ़ानी शुरू कर दी। अब आलम ऐसा है कि जीतन राम मांझी ने नीतीश की खातिर महागठबंधन को लात मारकर नीतीश के पाले जाने के लिए बैठे हैं। इस तरह राजनीतिक समीकरण, विकास की ब्रांडिंग और ब्यूरोक्रेसी की जाल नीतीश को राजगद्दी दिलाने में अहम भूमिका निभाती है।