पटना(द न्यूज़)। वजह चाहे कुछ भी हो या ईगो किसी का हो, हकीकत है कि यदि नरेंद्र मोदी की सरकार में जदयू शामिल होता तो बिहार के लिए अच्छा होता। बिहार की जनता के लिए अच्छा होता। यदि तीनों भाजपा-जदयू-लोजपा ने एक साथ मिलकर नमो सरकार का राज्यतिलक किया तो तीनों को ही संयुक्त रूप से दीवाली व ईद मनाने का हक है।
ऐसा लग रहा है कि राजनीतिक खेल में एक बार फिर बिहार का ही नुकसान होगा। जितना उत्साह से बिहार की तरक्की के लिए काम होना चाहिए उतना उत्साह से अब विकास की अपेक्षा करना यहां बेमानी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नमो सरकार से बाहर रहने का फैसला किया। इस फैसले पर बहस हो सकती है। यह फैसला कितना जायज है अगले विधानसभा चुनाव में पता चलेगा। लेकिन गांधी जी होते तो वे सरकार में शामिल होने का फैसला लेते। क्योंकि साथ रहकर अपनी मांग की लड़ाई अच्छी तरह लड़ी जा सकती हैं। तो, लड़ाई के अपने अपने तरीके हैं, मुख्यमंत्री जी। लेकिन इतना स्पष्ट है कि ईगो की लड़ाई में कहीं बिहार की जनता न पीस जाए। डबल इंजन की सरकार से जो उम्मीद है उस उम्मीद से जड़ती न काट ली जाए। दो की लड़ाई में हमेशा से तीसरे को फायदा होता है। बिहार की भलाई के लिए एनडीए पार्टनर को कोई मध्यम मार्ग निकालना चाहिए ताकि डबल इंजन डबल ताकत से बिहार को आगे ले जा सके