पटना। द न्यूज़। (विद्रोही)। बिहार विधानसभा चुनाव में युद्ध लड़ने से पहले कई समीकरण बिखड़ गया है। कई किला में दरारें पड़ गयी है वहीं नए समीकरण भी तैयार हो गए हैं। पक्ष हो या विपक्ष दोनो तरफ के घर टूटे हैं। जहां घर नहीं टूटे हैं वहां दरारें अवश्य पड़ी है। बिहार चुनाव के महाभारत के पहले एनडीए और महागठबंधन की सेनाएं तैयार हो रही है। साथ ही एक तीसरा मोर्चा भी करवट ले रहा है। बात यदि एनडीए की करें तो यहां भी चुनाव के पहले की चोट पड़ीं है। एनडीए के पार्टनर चिराग पासवान ने जोर का झटका धीरे से दे दिया है। उसकी राहें अलग हो चुकी है भले ही भाजपा के शीर्ष नेता एनडीए एकजुटता की बात कर रहे हों। लोजपा सुप्रीमो चिराग पासवान 143 सीटों पर उम्मीदवार खड़े करने जा रहे हैं। लोजपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि यदि एनडीए में रहे भी तो नीतीश कुमार की जलालत चुनाव जीतने के बाद झेलनी होगी। मंत्री बनाने के लिए चिरौरी करनी होगी।

महागठगठबंधन की बातें करें तो यह साफ टूट गया है। इसके पार्टनर रहे जीतनराम मांझी पहले ही झटका देकर जदयू के पाले आ गए हैं। यानी हम नेता एनडीए से जुड़कर नीतीश का गीत गाना शुरू कर दिए हैं। वहीं महागठबंधन के एक और पार्टनर उपेंद्र कुशवाहा की राहें भी अलग हो गयी है। एनडीए में उनके लिए दरवाजा खोलने का शुभ मुहूर्त निकलना बाकी है। वे एनडीए के दामन थामे या फ्रेंडली मैच खेलें महागठबंधन को तो झटका लग ही गया है।

रालोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के पार्टनर थे और इस चुनाव में उनके तीन सांसद जीतकर आये थे पर हमेशा कुछ नया करने की उनकी इच्छा ने महागठबंधन में धकेल दिया था। एक समय उपेंद्र कुशवाहा नीतीश से भी अधिक जनाधार वाले नेता माने जाते थे पर अस्थिरता उनके ग्राफ को और गिरा दी।

चुनाव के पहले उठापटक के इस खेल से भाजपा अपने को अलग रखे हुई है। वह जानती है कि नीतीश कुमार और चिराग पासवान में तनातनी है पर मौन साधकर एनडीए एकजुटता की बात कर रही है। यदि सच आकलन किया जाए तो भाजपा के शीर्ष नेताओं की नजर फिलहाल केंद्र सरकार पर है। उनका एजेंडा वर्ष 2024 का चुनाव है। केंद्र सरकार से अकाली दल के अलग हो जाने से भाजपा के आक्रामक पांव थम गए हैं। शिवसेना पहले ही एनडीए को अलविदा कह चुकी है। ऐसे में बिहार में नीतीश कुमार के हौसले बुलंद है।

भाजपा यदि रिस्क लेती तो बिहार में उसके लिए बड़े भाई का रास्ता खुल सकता था, किन्तु पार्टी का शीर्ष नेतृत्व फिलहाल अपने पुराने सहयोगियों से ज्यादा किरकिरी कराने के पक्ष में नहीं है।