पटना।द न्यूज़। ( विद्रोही)। कोरोना काल के पहले चुनाव ने जीवन के सब रंग दिखा दिए हैं। कहीं चुनाव प्रचार की बारात निकल रही है है तो कहीं मौत की चीत्कार गूंज रही है। नज़ारा ये है कि बिहार विधानसभ के चुनाव प्रचार में एक तरफ जिंदाबाद के नारे लग रहे हैं। वर्चुअल से एक्चुअल सभाएं होने लगी है। सत्तापक्ष और विपक्ष के उम्मीदवारों के समर्थन में नारे गूंज रहे हैं। मिठाईयां बंट रही है वहीं कुछ नेताओं व पत्रकारों के घरों से मौत का मातम मन रहा है। मृतक परिजनों की चीत्कारें सुनाई दे रही है। कोई पाने के लिए जिंदाबाद कर रहा है तो कोई खोने पर छाती पिट रहा है। पिछले 7 दिनों में बिहार के रहनेवाले 3 मंत्रियों और दो वरिष्ठ पत्रकारों की मौत हो चुकी है। 8 अक्टूबर को रामविलास पासवान का निधन हुआ। इसके बाद बिहार सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे विनोद कुमार सिंह का पोस्ट कोविड समस्या से मृत्यु हुई। फिर 14 और 15 अक्टूबर को टाइम्स ऑफ इंडिया के छायाकार प्रभु दयाल और कृष्णमोहन शर्मा की कोरोना से मौत हो गयी। और आज बिहार सरकार के कैबिनेट मंत्री कपिलदेव कामत का निधन हो गया।
बिहार चुनाव की चौधराहट में कोरोना संक्रमण का दर्द दब गया है। कोरोनकी खबरें अब मुख्यपृष्ठ पर बहुत कम छपती है। उसी स्थिति में छप रही है जब किसी बड़े नेता या शख्स की मौत कोरोना से ही रही है। हालांकि कोरोना की गंभीरता कम नहीं हुई है। बिहार में हर दिन औसतन 1000 कोरोना मरीज मिल रहे हैं। नेता, डॉक्टर, पत्रकार समेत सभी लोग मर रहे हैं।भारतीय दर्शन की बात करें तो जो भी जन्म लिया है वह अपने साथ कुछ भी ले जानेवाले नहीं हैं। इसलिए संतोष व सत्संगति को सबसे बड़ा धन माना गया है। जीना उसी का सार्थक है जो समाज मे कीर्ति करता है। कीर्ति यस्य स जीवति। मरने के बाद भी जो सदैव याद किये जाते हैं उन्हीं का जीना सार्थक है।