पटना ( विद्रोही/द न्यूज़)। देश मे संवैधानिक व्यवस्था की तहत लोकतंत्र है पर लोकतंत्र पर परिवारवाद/वंशवाद हावी हो रहा है। काबिल नेता परिवारवाद के आगे ठिगने/बौने हो गए हैं। इसका ताजा उदाहरण महाराष्ट्र में मंत्रिमंडल गठन में दिखा। बनाये गए 43 मंत्रियों में 19 मंत्री विभिन्न राजनीतिक दलों के परिवार से आते हैं। जिन तीन चार नेताओं को मंत्रिमंडल में जाने से रोक गया वे दफ्तरों पर ईंटें फेंक रहे हैं। ये है भारत वर्ष के एक राज्य का हाल । यहां कांग्रेस, एनसीपी व शिवसेना तीनों परिवारवाद का पोषक है।उत्तरप्रदेश और बिहार में यही हाल है। समाजवादी पार्टी का हाल किसी से छिपा नही है। राजद की राजनीति पूरे परिवारवाद पर टिकी है। रामविलास की अगुवाई वाली लोजपा तो लोकतंत्र का मजाक बना रही है। भाजपा के बड़े लीडर के बेटा, भतीजा, पत्नी समेत कई संबंधी पर्दे के पीछे से राज भोग रहे हैं। पार्टी को खड़ा करनेवाले अटल बिहारी वाजपेयी और अब नरेंद्र मोदी की बदौलत प्रतिष्ठा बच रही है। नहीं, तो अपने बेटे बेटियों के लिए टिकट मांगने वालों की भरमार है। दक्षिण भारत में करुणानिधि का परिवार राजनीति में छाया है। सब जगह परिवारवाद का झंडा फहरा रहा है। जिस रफ्तार से परिवारवाद पनप रहा है आने वाले समय में जनता इस परिवारवाद का गुलाम हो जाएगी। इस परिवारवाद संस्कृति के पीछे एक मात्र मकसद देश की संपत्ति का दोहन है। साथ ही एक बार MLA, MP बन जाने पर आजीवन पेंशन मिलने लगती है। भला ऐसा रोजगार छोड़कर परिवारवाद के पोशुआ कहाँ भटकना चाहेंगें। देश मे बेरोजगारी व्याप्त है पर इन नेताओं के लिए पेंशन जारी है। आम जनता व सरकारी कर्मी से पेंशन छीन ली गयी और कहते हैं देश मे लोकतंत्र है। देश को आर्थिक रूप से सुदृढ़ करना है तो जनप्रतिनिधियों से पेंशन को हटाना होगा। एकमात्र पेंशन हटा दी जाए तो देश के पास इतने पैसे हो जाएंगे कि हर बेरोजगार को 50 हजार महीने की व्यवस्था हो जाएगी। लिहाजा जनता आज नहीं तो कभी जगेगी ही। अपनी कमजोरी अंग्रेजों पर थोपकर यहां के मूल नेता ब्रितानी हुकूमत चला रहे हैं। आखिर परिवारवाद व उनके पेंशन के खिलाफ कौन सड़कों पर आएगा। ऐसी गुलामी से क्यों नहीं आजादी की दरकार है?