पटना ( विद्रोही/द न्यूज़)। हमेशा गठबंधन धर्म की दुहाई देने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद अब बेलगाम होते अपने नेताओं पर चुप हैं। भाजपा ने तो नीतीश के कहने पर गिरिराज सिंह, संजय पासवान व सचिदानंद राय जैसे नेताओं पर लगाम लगा दिया पर जदयू में पवन वर्मा, अशोक चौधरी और पीके ( प्रशांत किशोर) का बोल जारी है। जदयू की तरफ से भ्रम की राजनीति चल रही है। भाजपा पर सीटों के लेकर दवाब बन रहा है। ऐसा ही दवाब पिछले लोकसभा चुनाव के समय बनाया गया था और जदयू 17 सीटें लेने में कामयाब रहा था। भाजपा को छह सीटों की कुर्बानी देनी पड़ी थी। मुख्यमंत्री नीतीश को यह भरोसा हो गया है कि मेरे बिना किसी का काम नहीं चल सकता है। एक तरफ आरसीपी सिंह से नागरिकता संसोधन विधेयक का संसद में पुरजोर समर्थन कराया जाता है और दूसरी तरफ पीके से विरोध करा दिया जाता है ताकि बिहार की जनता भ्रम में रहे। जदयू ने बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा से अधिक सीटें लेने के लिए दवाब की रणनीति शुरू कर दिया है। मतलब साफ है , खोखिये नहीं तो नाव डूब जाएगी। पीके ने साफ कह दिया है जदयू विधानसभा चुनाव में भाजपा से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ेगा। उधर महागठबंधन में भी नीतीश का मायाजाल चल रहा है। भाजपा और महागठबंधन के बीच फैले भ्रम और मायाजाल के बल पर 4 प्रतिशत वोट की राजनीति सब पर भारी पड़ रही है। अधिक संख्याबल का दावा करे राजनीतिक दलों की सारी राजनीति नीतीश के आगे फेल है। विधानसभा में राजद के अधिक विधायक रहने के बावजूद लालू को छोटा बनना पड़ा। अलबत्ता नीतीश वाकई में बिहार की मौजूदा राजनीति में बेहतर विकल्प माने जा सकते हैं पर बिहार की राजनीति में लगातार कूटनीतिक भ्रम से गलत संदेश जा रहा है। बिहार की जनता अब धीरे धीरे महसूस कर रही है। इस बार सही में धर्मक्षेत्र की लड़ाई चुनाव में होगी। दशहरे के पहले भाजपा व जदयू के बीच खटास हुई तो नीतीश कुमार ने रावण बध के समय गांधी मैदान में प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष मदन मोहन झा को साथ मे बिठा लिया। बस, भाजपा के नेता सरेंडर कर दिए। कांग्रेस को लगा कि नीतीश उन्हें घास दे रहे हैं। लेकिन काम निकलते ही झा से मुंह फेर लिया गया। इस पूरी राजनीति में बिहार की जनता ठगी जा रही है।