तो क्या कमजोर कड़ी को दुरुस्त करना चाहते हैं नीतीश! प्रसंग गुप्तेश्वर पांडेय

 पटना। द न्यूज़। विद्रोही। भोजपुर इलाका जदयू का कमजोर पक्ष रहा है।गुप्तेश्वर पांडेय का नया मूव भोजपुर किले को मजबूत करने का हिस्सा हो सकता है। बहरहाल जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है मजेदार खेला शुरू हो गया है। राजनीति का खेल ही निराला है। डीजीपी की नौकरी छोड़ गुप्तेश्वर पांडेय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के तीर के फेर में पड़ गए हैं। यहां राजनीति के चाणक्य नीतीश कुमार ने गुप्तेश्वर पांडेय से डीजीपी की कुर्सी खाली कराके एक तीर से कई निशाना साधा है। अब यहां देखना है कि आखरी बाजी किसके हांथ आती है।

डीजीपी रहते गुप्तेश्वर पांडेय ने नीतीश ‘सरकार’ का खूब काम किया। गुप्तेश्वर पांडेय ने स्व. सुशांत सिंह राजपूत को न्याय दिलाने के लिए जो मुहिम छेड़ा उसे पूरा देश देखा। उनकी पहल पर सुशांत मामले में एफआईआर दर्ज किया गया जो सीबीआई जांच का आधार बना। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दूत बनकर तत्कालिक डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय सुशांत सिंह के पिताजी जी के घर गए थे। कुल मिलाकर वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की खूब वफादारी निभाये। इसमे कोई अतिशयोक्ति नहीं।

अब देखना है कि नीतीश कुमार ‘बाबा: के लिए कितनी वफादारी निभाते हैं। साथ ही जब बाबा चुनाव मैदान में कूदेंगें तो सुशांत समर्थित उन्हें कितना वोट दे पाते है जिनके लिये उन्होंने खूब चीखा।ये सारी बातें वक्त के करवट बदलने पर पता चल जायेगा। फिलहाल यह देखना है कि गुप्तेश्वर पांडेय को चुनाव लड़ने के लिए टिकट मिल पाता है की नहीं। वर्ष 2009 में भी गुप्तेश्वर पांडेय टिकट की आस में इस्तीफा दे दिए थे पर टिकट से वंचित हो गए थे। ये तो उनकी ऊंची पहुंच रही होगी कि फिर से जॉइन कर लिए। लेकिन इस बार लगता है कि गुप्तेश्वर पांडेय का कहीं न कहीं पुनर्वास हो जाएगा। हर राजनीतिक दल ऊंच ओहदे वाला ईमानदार आदमी को खोजता है।यदि ऐसा नहीं होता है तो वे फिर ठगे जायेंगें। हालांकि गुप्तेश्वर पांडेय ने यह घोषणा नहीं की है कि वे चुनाव लड़ने जा रहे हैं। 

महत्वपूर्ण है कि चुनाव से पहले मौजूदा सरकार ने एक रणनीति के तहत बाबा को ठिकाना लगा दिया है। अभी कई तरह के जुगाड़ सरकार को करने है।  थाने में मनमुताबिक थानेदार व पुलिसकर्मियों को बिठाना है। हो सकता था ये सारे काम बाबा के रहते संभव नहीं हो सकता। लिहाजा सरकार ने दूर की कौड़ी खेलते हुए एक तीर से कई निशाना साध दिया है। नेताओं की चाल में ब्यूरोक्रेट हो, आईपीएस हो या टेक्नोक्रेट सभी फेल हो जाते हैं।