आखिर ममता ने तोड़ दिया बीजेपी का चक्रव्यूह। कोरोना काल मे पूरे विपक्ष को दीदी ने दी ऑक्सीजन

द न्यूज़। आखिरकार पश्चिम बंगाल में खेला हो गया। ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह व पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा की संयुक्त सेना को अकेले परास्त कर दिया। कोरोना काल में सम्पन्न बिहार विधानसभा का चुनाव तो एनडीए की टीम ने जीत लिया था पर बंगाल में ममता ने नमो के विजयी रथ को रोक लिया। इस चुनाव में बिहार में जन्मे प्रशान्त किशोर की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी थी। जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे प्रशान्त किशोर बंगाल में ममता बनर्जी के चुनावी प्रबंधन का काम देख रहे थे। पीके ( प्रशांत किशोर) ने दावा किया था कि बीजेपी दहाई का अंक यानी 99 का आंकड़ा पर नहीं कर पायेगी। उन्होंने यह भी कहा था कि यदि बीजेपी दहाई का आंकड़ा पार करने में सफल रही तो वह चुनावी प्रबंधक के कार्य से सन्यास ले लेंगे। पीके के लिए यह बड़ा दाव था। पश्चिम बंगाल में ममता की जीत से पीके का कद और बढ़ गया है। भाजपा ने बंगाल चुनाव जीतने के लिए एड़ी चोटी एक कर दिया था। ममता के खास शुवेन्दु अधिकारी समेत कई प्रभावशाली नेताओं को तोड़कर अपने पाले में कर हवा बनाया। अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती से प्रचार कराया। जयश्रीराम नाम का सहारा लिया। भाजपा ने सारी ताकत झोंक दी पर बंगाल को फतह नहीं कर सकी। 

देश के नमो विरोधी सभी पार्टियों के लिए पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की जीत संजीवनी देने वाली है वहीं भाजपा के लिए मंथन का समय आ गया है वर्ष 2022 के फरवरी महीने में उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव होना है। भाजपा के सामने कई चुनौतियां हैं। किसान आंदोलन पहले से लठ लेकर खड़ा है। कोरोना जनता में बेचैनी पैदा कर रहा है। ऐसे में भाजपा को जनता के दुखों पर मरहम लगाने के लिए नई योजना लेकर आना होगा।पश्चिम बंगाल के साथ तमिलनाडु, असम, केरल व पुडुचेरी का भी चुनाव परिणाम आया है। पुडुचेरी में मात्र 30 सीटें हैं और यहां भाजपा सत्ता में आई है। लेकिन इससे छह गुना सीटों वाले तमिलनाडु में भाजपा और एआईडीएमके की टीम डीएमके और कांग्रेस की संयुक्त टीम से हार गई। केरल में भी नमो विरोधी एलडीएफ की जीत हुई। असम में भाजपा अपनी सरकार बचाने में कामयाब रही।

पश्चिम बंगाल में राजद नेता तेजस्वी यादव ने खुलकर ममता बनर्जी का समर्थन किया। कई स्थानों पर तेजस्वी ने ममता के पक्ष में चुनाव प्रचार किया। लिहाजा ममता की जीत से विपक्षी दलों को बड़ा बल मिला है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मौन रहने से भी ममता को फायदा ही मिला।