नयी दिल्ली। द न्यूज़। ( विद्रोही)। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वर्ष 2024 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लोहा लेने के लिए मुहिम शुरु कर दी है। इस मुहिम में कांग्रेस के राहुल गांधी और आप के अरविन्द केजरीवाल ने साथ देने का भरोसा दिया है। राजद के तेजस्वी प्रसाद यादव पहले से ही साथ में है। लेकिन इस विपक्षी एका को बैलेंस करने के लिए भाजपा विस्तारवादी नीति अपना रही है। दक्कन पर चढ़ाई इस नीति का हिस्सा है।
प्रश्न यह है कि क्या यह चेहरा नमो को चुनौती देने के लिए सक्षम है? या इस विपक्षी एकता की मुहिम में यूपी से सपा, महाराष्ट्र से शिव सेना व राकपा, पश्चिम बंगाल से ममता बनर्जी, तमिल नाड़ु से स्टालीन या तेलंगना से चंद्रशेखर भी साथ देंगे। मान लीजिये उक्त सारी गणना एक साथ आ जाती है तो क्या यह महाजोट नमो को पछाड़ देगा। अभी विपक्ष का स्वरूप सामने आना बाकी है। लेकिन विपक्ष को हासिये पर रखने के लिए अंदर ही अंदर भाजपा की तैयारी चल रही है। नीतीश को उम्मीद है कि बिहार में भाजपा की सीटें पहले से 15-20 कम हो जाएगी। लेकिन नीतीश भूल जाएँ कि बिहार में वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव की तरह रिजल्ट होने जा रहा है। वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा हारी अवश्य है पर वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव और वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में उसके ग्राफ जदयू से अच्छा रहा है। अब बिहार की जनता न तो लालू पर लट्टू होती है और न ही नीतीश पर। हालिया कुढ़नी के विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने लालू और नीतीश की टीम को अकेले पटखनी दी है। इसलिए अगले चुनाव में क्या परिणाम होगा यह अनुमान लगाना कठिन है।
विपक्ष के नेता भले ही एकजुट हो रहे हैं उन्हें जनता को एकजुट करने में अधिक ध्यान देना होगा। एक अनुमान की तरह भाजपा बिहार व यूपी में 20-30 खो दे लेकिन इसकी भारपाई के लिए वह दक्षिण भारत में ग्राउंड तैयार कर रही है। कांग्रेस नेता ए के एंटोनी के पुत्र और सी राज गोपालाचारी के पुत्र को अपनी पार्टी में शामिल करना इसी रणनीति का हिस्सा है। लिहाजा विपक्ष को चौतरफा फ्रंट पर कसरत करनी होगी।