भ्रम, भीड़ व मल्टी राजनीति के बीच जनता का मन डोल रहा। तो किसकी सरकार? कौन बनेगा बिहार का मुख्यमंत्री! देखिए बिहार का ताजा हाल!

पटनाद न्यूज़। (विद्रोही की कलम से)। बिहार चुनाव को लेकर जीत हार की बात करें तो धीरे धीरे परिदृश्य साफ हो रहा है। हालांकि जनता भ्रम की स्थिति में है। भीड़ दिखाई जा रही है। भीड़ से जीत हार का आकलन नहीं किया जा सकता। वोटिंग के एक दिन पहले जनता का रुख जीत हार को तय करेगा। ध्यान रहे बिहार चुनाव में आधा दर्जन से अधिक गठजोड़ जनता के समक्ष है जो भ्रम पैदा कर रहा है। तरह तरह के लुभावने वादे से जनता का मन डोल रहा है। बिहार चुनाव में यदि सिलसिलेवर तरीके से गठजोड़ की बात करें तो पहला गठबंधन एनडीए के रूप में खड़ा है। दूसरा गठजोड़ है महागठबंधन का। तीसरा समीकरण है बसपा को साथ लेकर गठजोड़ करने वाले उपेंद्र कुशवाहा का। चौथा गठजोड़ है ओबैसी को लेकर गठबंधन करने वाले देवेंद्र यादव का। पांचवां समीकरण है भीम पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर रावण को साथ लेकर गठजोड़ करने वाले पप्पू यादव का। छठा खेमा है भाजपा के असंतुष्टों के साथ चुनाव मैदान में उतरे लोजपा सुप्रीमो चिराग पासवान का। और एक अन्य समीकरण है यशवंत सिन्हा की अगुवाई वाले यूडीए का। ये सात विपरीत गठजोड़ बिहार के चुनावी कुरुक्षेत्र में एक दूसरे पर गदा भांज रहे हैं।

पहले गठजोड़ एनडीए की बात करें तो इसमें भाजपा , जदयू, हम और वीआईपी पार्टी शामिल है। एनडीए ने बिहार की सारी प्रभावशाली जातियों को समेट कर गठजोड़ तैयार किया है। भाजपा को सवर्णों का अधिकतर मत प्राप्त होता रहा है। प्रदेश में करीब 18 फीसदी सवर्णों की संख्या है। केंद्र की मोदी सरकार द्वारा आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों व मुस्लिमों को आरक्षण देने के बाद भाजपा को यह वोटबैंक और मजबूत हुआ है। करीब 40 लाख उच्च जाति के मुस्लिम शेख, सैयद व खान भी आरक्षण से लाभान्वित हुए हैं। जदयू की बात करें तो कुर्मी, कुशवाहा व कुछ मुस्लिम मतदाताओं की इस पार्टी पर पूरा भरोसा है। जीतन राम मांझी की हम पार्टी थोड़ा बहुत दलितों को खिंच लाएगी। एनडीए के नए सहभागी वीआईपी के मुकेश सहनी भी निषादों को आकर्षित करेंगे। इस तरह एनडीए पूरा कील कवच के साथ मैदान में उतरा है। एनडीए का माइनस पॉइंट यह है कि इसके पुराने साथी लोजपा ने नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। यूं कहिये चिराग ने एनडीए के फसल में चिंगारी लगा दी है। नीतीश कुमार के खिलाफ एक विद्रोह का वातावरण खड़ा कर दिया है। चिराग एक तरह से एनडीए के लिए चिरैता बने हैं।

महागठबंधन की बात करें तो इसमें राजद, कांग्रेस व तमाम वामदल शामिल हैं। तेजस्वी यादव के सीएम उम्मीदवार होने के कारण यादवों का करीब एकमुश्त वोट महागठबंधन में जाता दिख रहा है। कांग्रेस की मौजूदगी से कुछ सवर्णो व दलितों का वोट भी महागठबंधन को मिलेगा। वहीं वामदल सभी वर्गों का थोड़ा बहुत वोट हासिल करेंगेमहागठबंधन का सबसे नेगेटिव पॉइंट है कि बिहार की जनता भी भी लालू राबड़ी के 15 वर्षों को भूल नहीं पाई है। अपराध, अपमान व खौफ से निजात दिलाने के लिए राजद ने कोई प्रण नहीं लिया है। बेशक 10 लाख रोजगार देने का वादा किया गया है पर घोषणापत्र में यह भरोसा दिलाया गया होता कि बलात्कारी व गुंडा तत्व को एक घंटे में जेल की सजा दिलाएंगे तो जनता आकर्षित हो जाती। राजद को अपराध पर अंकुश लगाने के लिए शपथ पत्र प्रस्तुत करना चाहिए था। राजद ने दानापुर से रीतलाल यादव को उम्मीदवार बनाया है। मोकामा से बाहुबली अनंत सिंह को टिकट दिया है। नवादा से बलात्कार केस में सजा काट रहे राजबल्लव यादव की पत्नी को टिकट दिया है। जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद को टिकट दिया है। शिवहर से आनंद मोहन के पुत्र चुनाव मैदान में हैं। उनके खिलाफ चुनाव मैदान में उतरे एक प्रत्याशी की हत्या हो गयी है। लिहाजा उपद्रवी प्रकृति महागठबंधन का नेगेटिव है। जनता आशंकित है कि फिर कहीं अपराधियों का खुला तांडव न मचने लगे। इंकव राज में एक खास जाति का मन बढ़ जाता है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र यादव ने ओबैसी से मिलकर एक संगठन तैयार किया है और इस संगठन के बैनर तले इनकी पार्टी चुनाव मैदान में है। ओबैसी के कारण कुछ मुस्लिमो व देवेंद्र यादव के कारण कुछ यादव समुदाय का वोट इन्हें मिलेगा। लेकिन यह ध्यान रहे ये सभी दल तेजस्वी को ही नुकसान पहुंचाएंगे। क्योंकि दिनों का जनाधार एक समान है। तो इसका फायदा एनडीए को मिलेगा। इनके जनाधार से मिलता जुलता जनाधार पप्पू यादव का है। भीम पार्टी के साथ गठजोड़ है। इस पार्टी ने जनता के वाजिब मुद्दे उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है पर पुराने कृत्य को देख भरोसा कायम नहीं हो रहा है। पार्टी की मेहनत में कोई कमी नहीं है। पप्पू यादव के संगठन को जो वोट मिलेगा वह महागठबंधन के वोट को ही प्रभावित करेगा।

बिहार में एक और गठजोड़ पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री उपेंद्र कुशवाहा की अगुवाई में अंगड़ाई ले रहा है। उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा पार्टी ने बसपा से गठजोड़ कारक नया मोर्चा तैयार किया है। इस मोर्चा में भी भाजपा के कुछ नेता शामिल हैं। इस गठबंधन की तरफ से उपेंद्र कुशवाहा मुख्यमंत्री के दावेदार हैं। महागठबंधन से नाता तोड़कर उपेंद्र कुशवाहा ने नया प्लेटफार्म तैयार किया है। उपेंद्र ने तेजस्वी को सीएम कैंडिडेट मानने से इनकार कर दिया था। अनुभव के हिसाब से उपेंद्र कुशवाहा महागठबंधन के सशक्त सीएम उम्मीदवार बनाये जा सकते थे जो नीतीश की चुनौती के लिए सक्षम थे पर तेजस्वी की जिद के आगे नहीं चली।

एक और समीकरण उभर रहा है । वह है चिराग पासवान के नेतृत्व में भाजपा के असंतुष्ट ग्रुप का खेमा। रामविलास पासवान की मृत्यु के बाद चिराग को बिहार में समर्थन मिल रहा है। पर इनके उम्मीदवार जितने लायक है या महज हराने के काम करेंगे यह चुनाव परिणम के बाद ही पता चल सकता है। उदाहरण के तौर पर पालीगंज से एनडीए की तरफ से जदयू उम्मीदवार जयवर्धन यादव खड़े हैं। यहां से एक समय भाजपा की तरफ से उषा विद्यार्थी चुनाव जीतकर विधायक बनी थी। इस बार भी वह टिकट की दावेदार थी पर यह क्षेत्र ही जदयू के हिस्से चला गया। नाराज होकर उषा विद्यार्थी लोजपा से चुनाव लड़ रही है। इनके चुनाव लड़ने के कारण भाजपा का वोट यानी भूमिहार समुदाय लोजपा की तरफ शिफ्ट कर सकता है। पालीगंज उदहरणमात्र है। ऐसे में यहां एनडीए को ही नुकसान पहुँच सकता है। ऐसी स्थिति कई सीटों पर बन रही है।

बिहार में पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा बड़ी हसरत से यहां आये थे। कुछ पूर्व सांसदों व पएव विधायकों को मिलाकर यूडीए का गठन किया। शुरुआत में यशवंत सिन्हा ने नीतीश को विकल्प देने के समान ताकत दिखाई। जिलों का दौरा किया पर अंदरूनी कलह के कारण इनका संगठन मुकाम हासिल नहीं कर सका। पूर्व सांसद अरुण कुमार की पार्टी सबलोग मजबूती से मैदान में डटी है। डॉ सत्यानंद शर्मा की अगुवाई में लोजपा सेक्युलर भी चुनाव मैदान में खड़ा है। कुल मिलाकर निष्कर्ष यह निकलता है कि इस बार मल्टी राजनीति के बीच बिहार में भाजपा किंगमेकर की भूमिका अदा कर सकती है। लोकल बागी नेताओं की नई सरकार बनाने में अहम भूमिका होगी।ऐसे में सरकार बनाने में राज्यपाल की भी अहम भूमिका रहेगी।