पटना। द न्यूज़ ( विद्रोही)। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके सिपहसलार नेता भले ही 18 वर्षों से सत्ता की मलाई खा रहे हो पर पार्टी संगठन बीमार होती गयी। संगठन के कई नेता पार्टी का झंडा उठाये रहे पर उन्हें न तो कोई पद मिला और न ही कोई पहचान। कार्यकर्ता इतनी हैसियत भी नहीं बना पाये कि नीतीश उनसे मुलाक़ात भी कर सके। फिलहाल चर्चा है कि नालंदा को छोड़कर किसी भी जिले के पंचायत में जदयू का झंडा उठाने वाला नेता नहीं है। जदयू संगठन का ग्राफ दिन पर दिन गिरते चला गया भले ही नीतीश कुमार की कुर्सी बरकरार रही। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में पार्टी तीसरे नंबर पर आ गयी। इस बीच पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे आरसीपी सिंह को जदयू से निकाल दिया गया। अब उपेंद्र कुशवाहा की बेइज्जती हो रही है। वह दिल्ली एम्स में भर्ती थे किन्तु नीतीश समेत किसी बड़े नेता ने उनका हाल चाल नहीं लिया जबकी उपेंद्र कुशवाहा अपना सब कुछ छोड़कर जदयू में विलय कर लिए थे। वह नीतीश के लिए अपनी प्रतिष्ठा पर पत्थर खाये। नीतीश का जोरदार डिफेंड किया पर एक नीति के तहत उन्हें किनारे कर दिया गया। उपेंद्र जदयू को नंबर एक बनाने का बीड़ा उठाया था पर उन्हें लंगड़ी मार कर हासिये पर खड़ा कर दिया गया। आरसीपी और उपेंद्र के बाद जदयू का आधार वोट बचता ही नहीं है। नीतीश ने तेजस्वी के भरोसे कुढ़नी की सीट ले ली थी पर सात दल मिलाकर भी कुढ़नी बचा नहीं सके। लिहाजा अगला विधानसभा चुनाव में जदयू की क्या हालत होगी अब से कुछ कहना बेमानी होगा। नीतीश को मंथन करना होगा नहीं तो देर हो जाएगी। विधानसभा चुनाव के पहले वर्ष 2024 के मार्च महीने में लोकसभा का चुनाव होगा। इसके पहले जदयू में बिखंडन तय लगता है। जदयू के एक नेता का कहना है कि सत्ता की कुर्सी नीतीश और उनके 8-_10 लोगों के बीच बंटती रही और हम सब झंडा उठाते रहे।
जदयू के वरिष्ठ नेता व नीतीश कुमार के एक करीबी नेता ने बताया कि जब भी नीतीश कुमार सरकार बनाने के लिए समझौता किये उन्होंने अपने संगठन से अधिक सहयोगी दलों पर भरोसा किया। ऐसे में जदयू संगठन पर कोई ध्यान देना मुनासिब नहीं समझे।जब भाजपा से समझौता हुआ तो नीतीश भाजपा पर अधिक भरोसा करने लगे और संगठन गर्त में जाता रहा। फिर अब जब राजद से समझौता है तो नीतीश राजद पर खूब भरोसा कर रहे हैं। उलटे राजद के नेता उन्हें गाली दे रहे हैं। नीतीश को शिखंडी कह रहे हैं किन्तु सब सह रहे हैं। ऐसे में पार्टी कैसे बचेगी।