नड्डा के आगे शाह को शह क्यों?आखिर राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को रैली से दूर क्यों रखा गया

पटना ( विद्रोही/ द न्यूज़)। ये सभी जानते हैं भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष फिलहाल जगत प्रकाश नड्डा ( जेपी ) हैं। ये भी सभी जानते हैं कि अमित शाह भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि ऐसे में बिहार में वर्चुअल रैली करने की जिम्मेवारी जे पी नड्डा की बनती थी तो फिर शाह को क्यों आगे किया गया। क्या भाजपा में अभी भी अध्यक्ष का मोह अमित शाह से नहीं गया है। या शाह को एक एजेंडे के तहत गुजराती होने के कारण अधिक तवज्जो दिया जा रहा हैं। सवाल यह भी उठेंगे क्या इसके पीछे कोई जातीय सोच है। आप लालू व मुलायम के बारे में ऐसा सींच सकते हैं तो आपके बारे में कटों नहीं सोचा जाएगा। ज्ञात हो जेपी नड्डा का बिहार से पुराना लगाव है। वे यहीं से पढ़े लिखे है। यहां की राजनीति भी अच्छी तरह समझते हैं। पार्टी के राष्टीय अध्यक्ष हैं। फिर उन्हें वर्चुअल रैली से क्यों दूर रखा गया। क्या भाजपा में भी कांग्रेस के तर्ज पर सुपर पावर की सांस्कृति पनप गयी है। पीछे नजर दौड़ाएं तो दिसंबर 2019 में ही नड्डा अध्यक्ष पद संभालने वाले थे पर देरी की गई। लेकिन जैसे ही 22 जनवरी 2020 को नड्डा ने कमान संभाली देश के चारों तरफ नड्डा की जयकार होने लगी। नड्डा शिक्षा से लेकर राजनीति में शाह से अधिक अनुभवी हैं। बिहार आने पर बतौर अध्यक्ष नड्डा का अभूतपूर्व स्वागत हुआ। नड्डा का भाषण भी जोरदार होता है। नड्डा के आगे शाह का गुणगान फिंका पड़ने लगा था। ऐसे में एक सोची समझी रणनीति के तहत पार्टी अध्यक्ष को बौना करने की रणनीति बनाई गई है। यह महज कोरा आकलन है या सच्चाई आगे के कदम से पता चलेगा। अध्यक्ष के नाते राजनीति युग का पहला वर्चुअल रैली करने का श्रेय नड्डा को मिलना चाहिए था। मोदी के पहके कार्यकाल में जब अमित शाह पार्टी के अध्यक्ष हुआ करते थे तो उस समय राजनाथ सिंह गृह मंत्री हुआ करते थे। क्या बतौर गृहमंत्री राजनाथ सिंह को रैली करने का कभी मौका दिया गया। भाजपा में वह लोकतंत्र नहीं है देश के जब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे। उस समय भाजपा का अनुषंगी संगठन जमकर वाजपेयी का विरोध करते थे। स्वदेशी जागरण मंच ने विरोध किया। गोविंदाचार्य मुखर हुए पर वाजपेयी ने विरोध की जगह मौन रहना बेहतर समझा। आज भाजपा के किसी नेता में उतनी हिम्मत नहीं है कि वह शीर्ष नेता के गलत निर्णय को गलत करार दे। श्रम कानून को बेचने का काम हो रहा है। पत्रकारों को नौकरियों से निकलकर सड़क पर लाया जा रहा है। हजारों मजदूर पैदल चलने को मजबूर हुए। दर्जनों कुचलकर मारे गए। कोई भाजपा का नेता मुँह खोला। यह भी इतिहास है।