भाजपा ने किसान आंदोलन की चिंगारी थामने को छोड़े सारे घोड़े

पटना। द न्यूज़। विद्रोही। भाजपा ने किसान आंदोलन की चिंगारी रोकने के लिए अपने सारे घोड़े छोड़ दिए हैं। देश के सभी राज्यों में भाजपा के मंत्री, संसद, विधायक से लेकर बूथ स्तर के कार्यकर्ता विवादित कृषि कानून के बारे में दर दर सफाई दे रहे हैं। वहीं किसानों के हौसले देख सरकार की सांसें फूलने लगी है। 

बिहार की बात करें जहां एनडीए की सरकार है। भाजपा सरकार की हिस्सा है वहां भाजपा नेताओं को विशेष ड्यूटी दी गयी है। भाजपा के मंत्री किसान चौपाल लगाकर तीन नए कृषि कानून के बारे में समझा रहे हैं। बक्सर में चौपाल लग रहा है। राजधनी पटना में चौपाल लग रहा है। मंत्री, विधायक समेत कार्यकर्ता की जुबां पर कृषि कानून के गीत हैं। जब से किसान आंदोलन के दौरान एक शख्त ने किसानों के समर्थन में अपने को गोली मारी है तब से केंद्र सरकार की धड़कने बढ़ने लगी है। जानकारी के मुताबिक किसान आंदोलन में अब तक करीब एक दर्जन किसानों की तबियत खराब होने से मौत हो चुकी है। आंदोलन को लेकर केंद्र सरकार ने किसान नेताओं से कई दौर की वार्ता की पर परिणाम शून्य रहा। किसान तीनों किसान कानून को निरस्त करना चाहते हैं। सरकार कानून में संसोधन चाहती है पर कानून निरस्त की मांग को खारिज कर दी ही।

केंद्र की मोदी सरकार ने पिछले डेढ़ वर्षों में कई हिस्टोरिकल कार्य कर देश की करोरों जनता की तालियां बंटोरी। जम्मू कश्मीर से धारा 370 को निरस्त कर एक देश एक संविधान के एजेंडे को पूरा कर दिखाया। मुस्लिम महिलाओं के हित मे तीन तलाक संबंधी कानून को लागू किया। अयोध्या में राममंदिर निर्माण का रास्ता प्रसस्त किया। देश में नरेंद्र मोदी की छवि एक चक्रवर्ती सम्राट सी हो गयी। अपने 303 सांसदों के बल पर भाजपा ने भागीरथ कार्य कर दिखाए। नरेंद्र मोदी के इतने सारे कार्यों के अलावा कई ऐसे कार्य हैं जिसका यहां जिक्र नहीं है। इन कार्यों के बदौलत भजपा के कई क्षत्रपों और मुख्यमंत्रियों के गलत कार्य ढक गए। जनता बिलबिलाती रही कराहती रही पर आंदोलन नहीं हो सका। उत्तरप्रदेश में कई विवादित इनकाउंटर हुए। कई पत्रकारों की हत्याएं हुई। विधि व्यवस्था की धज्जियां उड़ी। करीब 600 ब्राह्मणों की हत्याओं की चर्चा सरेआम हुई पर नमो के कृतित्व के आगे आंदोलन नहीं हो सका। कोरोना काल ने भी जनता की आग को रोकने में मददगार साबित हुआ है। लेकिन ऐसा कहा जा रहा है कि किसान आंदोलन के रूप में दबी हुई ज्वाला धधकने को उतावला है। कोरोना काल से उबरते ही आंदोलन की चिंगारी और तेज हो सकती है।

राज्यों में भाजपा के सहयोगी किसान आंदोलन के खिलाफ खुलकर नहीं बोल रहे हैं। बिहार में भाजपा नेता किसानों को समझाने के लिए किसान चौपाल लगा रहे हैं पर भाजपा के सहयोगी जदयू और हम के नेता मौन हैं। ज्ञात हो कि भाजपा के एक पुराने सहयोगी अकाली दल ने तो मंत्रालय को लात मारकर सरकार से अलग हो गया। महाराष्ट्र में शिव सेना पहले ही भाजपा से अलग हो चुकी है। भाजपा को वर्ष 2019 में 303 सीटें उस समय मिली जब सहयोगी नमो नमो कर रहे थे। डेढ़ वर्षों में बहुत कुछ बदल चुका है। अगले डेढ़ वर्ष बाद उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव होना है। पश्चिमी उत्तरप्रदेश किसान आंदोलन की उर्वरा भूमि रही है। ऐसे में किसान आंदोलन लंबा चला तो भाजपा को नुकसान हो सकता है। भाजपा को तय करना है कि कानून प्यारा है या देश के किसान।