पटना। विद्रोही की कलम से। देश की चरमराई अर्थव्यवस्था और कोरोना की दोहरी मार के बीच बिहार का चुनावी कुरुक्षेत्र तैयार हो रहा है। अब किसी भी समय चुनाव की डुगडुगी बज सकती है। इस बार एनडीए और महागठबंधन के महारथियों के बीच 83 वर्षीय यशवंत सिन्हा भी अपने ‘घोड़े’ के साथ मैदान में उतार रहे हैं। सवाल है कि यशवंत के घोड़े धुरंधर नीतीश कुमार और भाजपा के अनुभवी घोड़े को पछाड़ सकेंगें! कुल मिलाकर कोरोना काल का यह युद्ध काफी दिलचस्प होगा। बिहार विधानसभा के चुनावी महाभारत में इस बार नए खिलाड़ी के रूप में भाजपा के कभी कद्दावर नेता रहे यशवंत सिन्हा अपने सिपाहियों के साथ कूद पड़े हैं। उनके प्रशिक्षण में यूडीए कहिए या तीसरा मोर्चा के चुनावी ‘घोड़ा’ चुनावी महाभारत लड़ने के लिए तैयार हो रहे हैं। लेकिन मूल प्रश्न है कि क्या चुनावी महाभारत जितने के धुरंधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सिपाही और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के योद्धाओं को टक्कर देने की स्थिति में हैं। आगामी चुनावी महाभारत में एक तरफ 15 वर्षों अनुभवी धनुर्धर सामने है तो दूसरी ओर प्रशिक्षु सिपाही हैं। तीसरे मोर्चे के सामने युद्ध जितना कठिन तो है पर ‘प्रकृति’ उनके अनुकूल तब्दील हो सकती है। मौजूदा राजनीतिक, आर्थिक परिस्थितियां पिछले चुनावी इतिहास से बिल्कुल अलग है। जनता कोरोना का मार झेल रही है। बिहार का कोई ऐसा परिवार नहीं है जो इस त्रासदी का डंक नहीं सहा हो।
सरकार तो एक समय लाचार हो गयी जब लोग कोरोना की जांच के लिए छटपटा रहे थे और जांच नहीं हो रही थी। लोग इलाज के लिए एक हॉस्पिटल से दूसरे हॉस्पिटल दौर लगा रहे थे और भर्ती के लिए जगह नहीं थी। सभी राजनीतिक दलों भाजपा, जदयू, कांग्रेस, राजद समेत प्रमुख पार्टियों के कार्यकर्ता परेशान हुए हैं। बाहर से करीब 30 लाख प्रवासी बिहारी मन में पत्थर लिए बैठे हैं कि मौका लगे और इस सरकार पर चोट मारे। आर्थिक स्थिति इतनी फटेहाल कभी नहीं रही। विश्व गुरु बनने का सपना टूटता हुआ दिखाई दे रहा है। देश का जीडीपी माइनस 23 प्रतिशत हो जाना अपने आप देश के लिए मजाक बन गया है।
इस बार का बिहार विधानसभा चुनाव बिलकुल अलग है। देश के लिए यह चुनाव नया ट्रेंड साबित होगा। कोरोना काल का यह पहला चुनाव है। किसी भी राजनीतिक दल के लिए कोई हवा नहीं है। ऐसे में तीसरा मोर्चा इसका फायदा उठा सकता है।
एक बात स्पष्ट है। आगामी चुनाव में मत प्रतिशत काफी कम रहने की उम्मीद है। लिहाजा जीत का मार्जिन भी कम रहेगा।