ये सत्ता के लिए एकजुट है या विपक्षी दलों का महफ़ूट!

 पटना। द न्यूज़। ( विद्रोही)। विपक्षी दल सत्ता के लिए एकजुट हो रहे या विपक्षी दलों में हो रहा आई महफूट। बिहार में विपक्षी पार्टियों में महफूट हो गया है। चुनाव के छह महीने पहले तक बिहार में  विरोधी दल एनडीए को सत्ता से बाहर करने का राग अलाप रहे थे पर चुनाव नजदीक आते ही सभी आपस में एक दूसरे से मजबूती के दम्भ पालकर बिखड़ गए। बिहार में विपक्ष कई टुकड़ों में बिखड़ गया है। नजर दौड़ाइये। नीतीश के एनडीए में जाने के बाद महागठबंधन में राजद, कांग्रेस, रालोसपा, हम और वीआईपी का वजूद था, किन्तु इस गठबंधन से हम और रालोसपा निकल चुकी है। यानी रालोसपा नेता उपेंद्र कुशवाहा और हम नेता जीतन राम मांझी की राहें अलग हो चुकी है। अब महागठबंधन टूटकर एक दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार उतारेगा। रालोसपा नेता उपेंद्र कुशवाहा ने बसपा से हांथ मिलाकर नया संगठन खड़ा कर दिया है। तेजस्वी यादव ने जब उपेंद्र कुशवाहा के खास भूदेव चौधरी को अपने पाले कर लिया है तो इसका असर दिखाई देगा ही।दोनों के बीच चुनाव मैदान में लड़ाई अब तगड़ी होगी। पहले जो नीतीश के खिलाफ लड़ाई लड़ने का दावा करते थे वे अब आपस मे लड़ेंगें।

ज्ञात हो कि पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने बिहार में नीतीश कुमार को चुनौती देने के लिए कई दलों के साथ यूडीए का गठन किया है। शुरुआत में यशवंत सिन्हा ने प्रदेश में हलचल पैदा कर दी थी, किन्तु यूडीए के घटक दल आपस में प्रतिस्पर्धा करने लगे। सभी आपस में अपने को बड़ा मानकर एक दूसरे को गुप्त रूप से नीचा दिखाने लगे। इनमें से एक दल तो जातिसूचक कह दूसरे को अपमान करने लगा। अलबत्ता यशवंत सिन्हा की मंशा पर पानी फिर गया। यशवंत सिन्हा के मजबूत कड़ी देवेंद्र यादव ने अपना रास्ता अलग कर ओबैसी की पार्टी के साथ एक अलग संगठन खड़ा कर लिया।  श्री सिन्हा 83 वर्ष की उम्र में बड़ी हसरत से बिहार की राजनीति में कूदे हैं। फिलहाल यूडीए के साथ पूर्व सांसद अरुण कुमार, पूर्व सांसद रंजन यादव और लोजपा सेक्युलर के अध्यक्ष डॉ सत्यानंद शर्मा मौजूद हैं।

इस तरह महागठबंधन के दो गुट बनने के बाद यूडीए भी दो धरा में बंट चुका है। बिहार में विपक्ष की बात आती है तो पूर्व सांसद पप्पू यादव का भी नाम आता है। आज इन्होंने ए आई एम एल से गठजोड़ किया है। फिलहाल एनडीए के आगे विपक्ष के नाम पर महागठबंधन, यूडीए, देवेंद्र यादव, पप्पू यादव और इंडिपेंण्डेन्ट होंगें। हो सकता है यूडीए के कुछ घटक दल अलग अलग भी चुनाव लड़े।

गौरतलब है कि इतनी विपक्षी पार्टियां मैदान में होंगी तो आखिर नुकसान किसका होगा। ऐसे में विपक्ष के ही अधिक नुकसान होने की संभावना है। यदि इनका मकसद सचमुच में सत्तापक्ष को बेदखल करने रहता तो ये एकजुट हो जाते और इनकी लड़ाई आपस मे दिखाई दे रही है। आने वाले समय में और समीकरण बनेंगें। एनडीए से चिराग की रोशनी भूकभुका रही है।