उठा सवाल, स्त्रियों का अमृत महोत्सव कब होगा! अभय ठाकुर की पुस्तक का लोकार्पण एवं परिचर्चा

वाराणसी/ पटना। द न्यूज़। वाणी प्रकाशन द्वारा सद्यः प्रकाशित पुस्तक “स्त्रियों का अमृत महोत्सव कब होगा?” का आज लोकार्पण किया गया। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में वित्त अधिकारी के रूप में कार्यरत भारतीय राजस्व अधिकारी डॉ अभय कुमार ठाकुर द्वारा लिखित यह पुस्तक समय और समाज से एक जरूरी हस्तक्षेप करती हुई कृति है। कोरोना के नियमों का पालन करते हुए यह आयोजन आभाषी माध्यम पर ही आयोजित हुआ जिसमें परिचर्चा के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज के आचार्य डॉ रामेश्वर राय, मिरांडा हाउस कॉलेज की आचार्य डॉ रेणु अरोड़ा, हैदराबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. गजेन्द्र पाठक एवं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के महिला महाविद्यालय की समाजशास्त्र विभाग से प्रो. रीता सिंह उपस्थित रहे। प्रकाशन की ओर से श्री अदिति माहेश्वरी जी ने परिचर्चा में उपस्थिति दर्ज़ की तथा कार्यक्रम का संचालन सुशांत कुमार शर्मा, शोध छात्र , काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, ने किया।

     लोकार्पण की औपचारिकता के बाद उपस्थित सभी विद्वत अतिथियों ने लेखक अभय कुमार ठाकुर जी को बधाई और शुभकामनाएं दीं तथा परिचर्चा का सत्र प्रारम्भ हुआ। पुस्तक की योजना और उसके उद्देश्यों पर अपने संक्षित उद्घाटन वक्तव्य में लेखक ने बताया कि यह पुस्तक उनके छात्र जीवन से लेे कर एक सरकारी अधिकारी के रूप में चल रहे जीवन तक के विभिन्न समयों का चिंतन है। कोरोना काल में आई हुई त्रासदी और उसमें कामगार महिलाओं के लिए उत्पन्न संकटों ने उनका ध्यान इस ओर आकर्षित किया। एक ओर देश जब कि आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, स्त्री आज भी अपने अधिकार की रक्षा नहीं कर पा रही। यह पुस्तक इन्हीं अतंर्विरोधों की एक पड़ताल है। प्रो. रीता सिंह जी ने अपने उद्वेलित करने वाले वक्तव्य में इस कृति के महत्व का रेखांकन करते हुए कहा कि इसका शीर्षक एक सवाल है और यह सवाल ठीक वैसा ही है जैसे मानवाधिकारों के बीच में महिला अधिकारों का सवाल खड़ा होता है। उन्होंने कहा कि स्त्रियों को अपने स्वप्न बदलने होंगे क्योंकि जैसा स्वप्न होगा वैसी वैचारिकी और जैसी वैचारिकी रहेगी समाज वैसा ही बनेगा। स्त्री देवी है या कुल्टा और वह क्या होना चाहती है इसका फैसला स्त्री स्वयं करेगी। 

चर्चा के अगले क्रम में प्रो. गजेन्द्र पाठक जी ने कहा कि अभय जी के लेखन में विजयदेनारायण साही की चिंतन प्रक्रिया झलकती है। वे उस भूमि से आते हैं जहां गार्गी, मैत्रेई जैसी स्त्रियों ने जन्म लिया है, अतः यह स्त्री के अधिकारों की बात उनके द्वारा किया जाना स्वाभाविक ही है।डॉ. रामेश्वर राय जी ने अपने सुचिंतित वक्तव्य में कृति की एक शानदार समीक्षा रखी और इस पुस्तक को विचारों की एक पोटली बताया। उन्होंने यह कहा कि पुस्तक के शीर्षक में जो सवाल निहित है वह परिवर्तन और विकास के दावेदारों से किया गया सवाल है। इस क्रम में उन्होंने चिह्नित किया कि इस पुस्तक की केन्द्रीय स्थापना यह है कि जब अंतर्विरोध हमारे देश की आजादी में ही निहित है तो उसके पचहत्तर वर्ष बिना अंतर्विरोध के कैसे बीत सकते हैं। यह पुस्तक दावा करती है कि स्त्रियों की आकांक्षाओं के मानक से उनकी स्वाधीनता का मापन होगा।डॉ रेणु अरोड़ा जी ने अपने विश्वविद्यालयी जीवन के मित्र रहे अभय ठाकुर जी को धन्यवाद और बधाई देते हुए कहा कि यह पुस्तक एक सवाल से शुरू होती है और यह सवाल उस बेचैनी की पहली सीढ़ी है कि आखिर यह सब ऐसा क्यों है!

  अंत में प्रकाशन की ओर से अदिति माहेश्वरी जी ने अपनी शुभकामनाएं व्यक्त की और सभी अतिथियों के प्रति अपना आभार ज्ञापित किया।