पटना। द न्यूज़। लोजपा के नए गट पर सूरजभान सिंह भारी पड़ गए हैं। एक तरह से बिहार में राजनीति गुड्डे गुड़िया का खेल हो गयी है। लोजपा का दो फाड़ तो हो ही गया था अब सूरजभान के इशारे पर पशुपति पारस को नया अध्यक्ष चुन लिया गया। उधर लोजपा के एक ग्रुप का अध्यक्ष चिराग पासवान हैं। यानी एक लोजपा के दो अध्यक्ष हो गए हैं। ये सब बंदरबांट केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह लेने के लिए हो रहा है। जाहिर है यदि पारस मंत्री बनेंगे तो मलाई सूरजभान अधिक खयेंगे। पारस को आगे करने में सूरजभान की महती भूमिका है। पारस तो बस मुखौटा हैं असली किरदार तो सूरजभान हैं।

चूंकि सूरजभान दबंग नेता है। पूर्व में उनके ऊपर कई आपराधिक केस चल चुका है। सबमें बरी हुए। ऐसे में पारस गुट ने डराने के लिए सूरजभान को आगे कर दिया। सूरजभान के आवास पर ही पशुपति पारस को पार्टी का नया अध्यक्ष चुना गया। चिराग कहते हैं वह सिद्धान्त की राजनीति कर रहे हैं। उन्हें दबंग व बाहुबली नेता पसंद नहीं है। अब जनता जनार्दन तय करेगी कि असली नकली कौन है। लेकिन एक बात स्पष्ट है कि जात की राजनीति खुलकर हो रही है। पारस गुट में भूमिहार का बोलबाला है जबकि पार्टी की मूल राजनीति पासवान पर टिकी है। दरअसल भाजपा के एक खास वोटबैंक पर सेंध मारने की यह रणनीति है। इसके पीछे जदयू का हांथ हो सकता है। सूरजभान की दबंग राजनीति के कारण कुछ मीडिया भी नए गुट के खिलाफ मुखर नहीं हो रही है।