पटना। द न्यूज़। देश में दलितों की हत्या होने पर उनके परिजनों को पहले से सरकारी नौकरी देने का प्रावधान है। तमिलनाडु में तो वर्ष 2017 से इस कानून का पालन हो रहा है जबकि बिहार में अभी घोषणा की गई है। दलितों यानी एससी/एसटी की हत्या हो जाने पर उसके परिजनों को सरकारी नौकरी देने का प्रावधान तीन वर्ष पहले से है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने वर्ष वर्ष 2015 में ही में संसद से अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति संसोधन कानून पारित कराया था। इस संसोधन कानून में दलित की हत्या हो जाने पर उसके परिजनों को सरकारी नौकरी देने की व्यवस्था की गयी है।
इस तरह बिहार में कल नीतीश कुमार द्वारा दलितों की हत्या होने और उसके परिजनों को सरकारी नौकरी दिए जाने का प्रस्ताव बहुत पीछे है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कल सामीक्षा बैठक में अधिकारियों को निर्देश दिया कि यह देखें कि दलित की हत्या हो जाने पर उसके परिजनों को कैसे सरकारी नौकरी मिल सकती है। इस संदर्भ में जरूरी कानून बनाने का निर्देश दिया गया। लेकिन वास्तविकता है कि केंद्रीय कानून के आलोक में पहले से दलितों को इसका फायदा मिल रहा है। तमिल नाडु की सरकार ने सितंबर 2017 से ही दलित की हत्या हो जाने पर उसके परिजनों को सरकारी नौकरी, पेंशन व आवास की व्यवस्था कर रही है। 2015 के बाद वर्ष 2018 में भी मोदी सरकार ने एससी/ एसटी अत्याचार निवारण संसोधन कानून पारित किया था।
इस संसिधान कानून के तहत दलित के यौन उत्पीड़न मामले में 2 लाख रुपये, बलात्कार की पुष्टि पर 5 लाख रुपये और गैंग रेप या तेजाब फेंकने के मामले में 8.5 लाख रुपये देने का प्रावधान कर दिया गया है। ज्ञात हो कि सबसे पहले वर्ष 1989 में एससी/ एसटी अत्याचार निवारण कानून बना। फिर वर्ष 1995 में इससे संबंधित संसोधन कानून बना। फिर 2015 में तथा उसके बाद वर्ष 2018 में संसोधन कानून पारित हुआ। नीतीश सरकार हर काम मे अपने को आगे रहने का दावा करती है पर इस काम में वह पीछे है। समझ जाता है कि चुनाव सिर पर मंडराने के कारण दलितों की याद आयी है। एक और कारण है। फिलहाल लोजपा नेता रामविलास पासवान और चिराग पासवान से नीतीश का अनबन चल रहा है। लिहाजा दलितों को अपने पाले में करने का खेल चल रहा है।